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Showing posts from May, 2020

"त्यागपत्र" समीक्षा; - जैनेंद्र कुमार

पहली बार जैनेंद्र कुमार को पढ़ा... त्यागपत्र पढ़ते हुए.. मुझे निर्मला की त्रासदी याद आ गई .. जैसे जैसे मैं इस लघु उपन्यास को पढ़ रहा था... निर्मला की वो कथन याद आ गया कि .. दुःख में जलना तय है .. और दुःख ने निर्मला जैसे कइयो स्त्री को अपने आगोश में लीन कर लिया..। प्रेमचंद जी मे जिस तरह से स्त्री विमर्श की सशक्त गद्य गढ़ी है वह अद्भुत है .. और त्यागपत्र पढ़ते हुई मुझे लगा कि जैनेंद्र कुमार को स्त्री विमर्श पर प्रेमचंद के समकक्ष कहा जा सकता है अगर कोई बाध्यता न हो तो। इन स्त्रियों ने कर्तव्य निर्वाह करते हुए जिस प्रकार नैतिकता, मर्यादा का विश्लेषण किया, जिस तरह सामाजिक संरचना में रचे बसे पाखंड को तार तार किया वह भविष्य की अधिकारसंपन्न स्त्री के लिए रास्ता बनाता है। जैनेंद्र की इन स्त्रियों ने कहीं स्वेच्छा से अपना जीवन नहीं चुना है। अक्सर यही हुआ कि उनके मन की जो बात थी, मन में ही उसका दम घुट गया। लेकिन परिस्थितियों का सामना करने में इनके वजूद की जद्दोजहद प्रकट होती है। नियति की शिकार होने के बाद भी इन स्त्रियों ने अपने लिए रास्ते जरूर बनाए या कम से कम रूढ़ रास्तों से ऐतराज दिखाया। ... निय...