सब कुछ थम सा गया, रात आधी गुजर चुकी है बिस्तर पर पड़ा हूँ कमरे में अँधेरा है सिर्फ एक चिंगारी जल रही है जिसमे मैं तुम्हारा अक्स देख पा रहा हूँ | झींगुरो की आवाजे तो एकदम सुनाई नहीं दे रहे है पता नहीं क्यों ? और तुम्हारी यादें मुझपर हावी हो रही है | इन सब के क्या मायने है मुझे नहीं मालूम, ये सन्नाटा मेरे बिस्तर में सिमट रहा है छू रहा है मुझे पर कुछ मालूम नहीं हो रहा है ?? कुछ देर बाद मैं सो जाऊँगा, और मैं बस सोना चाहता हु | खिड़की से आ रही भीनी- भीनी रौशनी से मैं लड़ रहा हूँ | मै जानता हूँ कि इनसे हार जाऊंगा पर फिर भी क्योकि मैं अब जिद्दी हो गया हूँ , पहले से ज्यादा | मैं जानता हूँ मुझे मनाना कोई नहीं आएगा इसलिए अब मैं गलतिया कर रहा हूँ , इन गलतियों में ही अपने आप को ढूंढ रहा हूँ | मुझे इन सब से फर्क क्यों नहीं पड़ता ये सब सवाल मै दफ़्न करके बैठा गया हूँ | मैं वो सब कुछ हो गया हूँ जो मुझे नहीं होना चाहिए था | इन सब बातो से मुझे कोई गुरेज नहीं है, खैर बस एक चीज है की मैं जिन्दा हूँ और जिन्दा होने के लिए इतना ही काफी है |