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Showing posts from June, 2019

शादियों में गाने

शादियों का मौसम चल रहा है, उतनी ही तेजी से छौंका के साथ गर्मी भी लगा रहा है ...... जून के महीने में गर्मी अपने चरम पर होती है, शादी के इस मौसम में बारिसों का संसय बना रहता है , शादी करने वाले कि जी हलकान में रहती है कि कब बारिस हो जाए और कब उनके ख्याबो की उस सजावट पर पानी  फेर दे..... ...  .... .. शादियों के मौसम में पहले हिंदी के रोमांटिक युग के गानों का बोलबाला होता था ,,..... "वादिये इश्क़ से आया है मेरा शहजादा" जैसे गानों से लेकर "थम के बरस जरा थम के बरस मुझे महबूब के पास जाना है " मेघ देव भी रुख़ जाते थे और बारिस की बूंदे जरूर पड़ जाती थी, खासकर के जून के महीनों में.... अब धीरे-धीरे ट्रेंड बदला  हिंदी गानों के जगह आधुनिक भोजपुरी चरितार्थ के गीत बजने लगे है .... वह गाने जो नाच के मंच को सुशोभित करते थे अब वह शादिये के मंडप तक गूंजते है...... "पियवा से पहिले हमार रहलु" से लेकर "देवर करी घात ए राजा" तक... यही तक सीमित नही रहता है "रात दिया बुता के पिया क्या-क्या किया" जैसे गानों से प्रश्न भी पूछ लिया जाता है .....इन सब से मेघ...

गांव के लड़के…

हम गांव देहात के लड़के, गर्मी के दुपहरी में एसी और कूलर नही ढूढ़ते है,बस जहाँ ही पेड़ की छांव मिल जाये वही खाट डालकर लेट जाते है, मठलाते है और कान में ठेठी डाल कर शहर से बिल्कुल अलग अंग्रेजी गानों से कहि दूर हिंदी और भोजपुरी गानों को मदमस्त वाला होके उसी खाट पर हिलकोरे लेते रहते है , ये मात्र एक गांव की छवि नही बल्कि कई गांवों में अमूमन ऐसी छवि देखने को मिल जाएगी, जहाँ हम जैसे लौंडे रहते है, शहरो में भौकाल मारने के लिये जस्टिन बीबर, अर्जित,मलिक का गाना सुन ले मगर घर की खटिया पे सिर्फ मनोज तिवारी, निरहुआ ,पवन और खेसारी का ही गाना याद आता है, एमा,कैट्रीना तो बस हमे मूवी में ही अच्छी लगती है असल जिंदगी में हमे तलाश है तो काजल राघवानी और आम्रपाली दुबे जैसी......लेकिन अपना छोटा सा गांव अपनी आँखों में ले कर चलता हूं सड़क के किनारे हमे खड़े होकर जूस पीने से लेकर लिट्टी चोखा खाने तक मुझे कोई हिचकिचाहट नही होती क्योकि भईया हम है लोअर मिडिल क्लास फैमिली और संकोच हमारे होमोग्लोबिन में तैरता है जैसे ........ #गाँव #घर #देहाती_लड़के