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गांव के लड़के…

हम गांव देहात के लड़के, गर्मी के दुपहरी में एसी और कूलर नही ढूढ़ते है,बस जहाँ ही पेड़ की छांव मिल जाये वही खाट डालकर लेट जाते है, मठलाते है और कान में ठेठी डाल कर शहर से बिल्कुल अलग अंग्रेजी गानों से कहि दूर हिंदी और भोजपुरी गानों को मदमस्त वाला होके उसी खाट पर हिलकोरे लेते रहते है ,
ये मात्र एक गांव की छवि नही
बल्कि कई गांवों में अमूमन ऐसी छवि देखने को मिल जाएगी,
जहाँ हम जैसे लौंडे रहते है, शहरो में भौकाल मारने के लिये जस्टिन बीबर, अर्जित,मलिक का गाना सुन ले मगर घर की खटिया पे सिर्फ मनोज तिवारी, निरहुआ ,पवन और खेसारी का ही गाना याद आता है, एमा,कैट्रीना तो बस हमे मूवी में ही अच्छी लगती है असल जिंदगी में हमे तलाश है तो काजल राघवानी और आम्रपाली दुबे जैसी......लेकिन अपना छोटा सा गांव अपनी आँखों में ले कर चलता हूं सड़क के किनारे हमे खड़े होकर जूस पीने से लेकर लिट्टी चोखा खाने तक मुझे कोई हिचकिचाहट नही होती क्योकि भईया हम है लोअर मिडिल क्लास फैमिली और संकोच हमारे होमोग्लोबिन में तैरता है जैसे ........
#गाँव #घर
#देहाती_लड़के

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