आज विश्वविद्यालय के सत्र का आखिरी दिन था , और हम लोगो के बीए प्रथम वर्ष का, सो जो मन मे हर्षोल्लास रहता है उसकी एक अलग सीमा होती, घर गांव जाने की उन एक साल के बेहतरीन यादों को समेटने की जब गांव से कोई लड़का एक स्कूल, कालेजों से एक बड़े शहर के विश्वविद्यालयों में प्रवेश करता है जो महज सौ हज़ार की भीड़ का सामना किया होता है और अचानक हजारों हजार की भीड़ को देखता है तो सिर्फ देखते रह जाता है आँखे फाड़ के एक टकटकी निगाह से ढूढ़ता रहता है शायद कोई अपना मिल जाये। विश्वविद्यालय में आने के पश्चात कुछ हो या न हो एक काम जरूर होता है कि लड़का पहिले अपना क्षेत्रवाद साधता है भले ही उसे युपी के सारे जिलों का नाम पता ह्यो या न हो,,,,, और साधे ही न क्यो चूंकि अपनी भाषा और संस्कृति से दूसरे भाषा और संस्कृति में एडजस्ट नही कर पाता है । यही हाल अपना भी रहा .... जारी✍️✍️