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Showing posts from May, 2019

विश्वविद्यालय

आज विश्वविद्यालय के सत्र का आखिरी दिन था , और हम लोगो के बीए प्रथम वर्ष का, सो जो मन मे हर्षोल्लास रहता है उसकी एक अलग सीमा होती, घर गांव जाने की उन एक साल के बेहतरीन यादों को समेटने की जब गांव से कोई लड़का एक स्कूल, कालेजों से एक बड़े शहर के विश्वविद्यालयों में प्रवेश करता है जो महज सौ हज़ार की भीड़ का सामना किया होता है और अचानक हजारों हजार की भीड़ को देखता है तो सिर्फ देखते रह जाता है आँखे फाड़ के एक टकटकी निगाह से ढूढ़ता रहता है शायद कोई अपना मिल जाये। विश्वविद्यालय में आने के पश्चात कुछ हो या न हो एक काम जरूर होता है कि लड़का पहिले अपना क्षेत्रवाद साधता है भले ही उसे युपी के सारे जिलों का नाम पता ह्यो या न हो,,,,, और साधे ही न क्यो चूंकि अपनी भाषा और संस्कृति से दूसरे भाषा और संस्कृति में एडजस्ट नही कर पाता है । यही हाल अपना भी रहा ....   जारी✍️✍️

मेरी माँ ( मातृ दिवस )

 अनपढ़ है पर, मेरे चेहरे को खूब पढ़ती है, वह मां ही है जो मेरे हर दुख में सिसकती है मैं खाना खाया या नहीं हमेशा पूछती है चाहे उसके पास रहूं या उससे कोसों दूर पहले जब मैं छोटा था, अपने सारे कामो को छोड़ कर मेरे लिए सुबह जल्दी खाना पकाती थी कहीं देर ना हो मेरे स्कूल जाने की। अब भले ही बड़ा हो गया हूं घर से कोसों दूर हो गया हूं पर जब भी घर जाता हूं माँ पहले मुझे खाना खिलाती है फिर अपने खाती है चाहे देर रात से कहीं से घूम कर आउँ या देर दोपहर में। भले ही अनपढ़ है पर मेरे चेहरे को पढ़ती है वह मां ही है जो मेरे हर दुख में सिसकती है मुकेश आनंद 12/04/2019

हॉनर किलिंग

"इश्क पर जोर नहीं है वो आतिश गालिब  कि लगाए न लगे और बुझाए न बुझे"  पता नहीं कौन सी इज्जत और सम्मान के लिए लोग कत्लेआम करते हैं जिसे ऑनर किलिंग कहते हैं।  चाहे वह एक मजहब के हो या अलग-अलग मजहब के पर इन सब मामलों में हमारा समाज आज भी पीछे हम हर तरफ से तो विकसित हुए हैं पर ये गंदी सोच लोगों के जेहन से नहीं निकल पाए हम लाख गुना पढ़-लिख और एक आदर्श समाज की कल्पना करें पर जो सामाजिक रूढ़ियां हैं जिससे  हम ऐसे किसी भी आदर्श  समाज का निर्माण नहीं कर सकते । जो भी समाज सुधारक हैं सब ने अंतर्जातीय विवाह की वकालत की पर वह कभी समाज ने स्वीकार नहीं किया  जब कन्या भ्रूण हत्या और बाल यौन शोषण का मामला आता है तब वह इज्जत का ख्याल क्यों नहीं आता इज्जत हमें तभी याद आती है जब लड़की अपने मन से शादी करती है.........

हरियाली

बसंत की बहार जा चुकी है चैत्र का महीना आ गया पेड़ों से पुराने पत्ते गिर गए हैं, सेमल के फूल अब अपने अंतिम पड़ाव में है चैत का महीना आते ही शरीर में चुनचुनाहट होने लगती है हमारे विश्वविद्यालय के कुछ साथियों को भी यह मौसम आते ही उनके अंदर की चुनचुनाहट को जगा देती है खासकर जब राष्ट्र गौरव और पर्यावरण अध्ययन के बारे में भी पढ़ना हो तो यह तो इसकी चिंता जायज होती है। एक ,पर्यावरणीय छात्र होने के नाते हरियाली की चिंता उनके मन में सताने लगती है बेचैन कर देती है विश्वविद्यालय के एक छोर से दूसरे छोर की ओर चक्कर लगाते नजर आते हैं हरियाली गायब होने के कारण कहीं नई जगह नहीं मिलती मिलती बैठने के लिए ऐसे कई ठिकानों को नष्ट कर दिया जाता है चूंकि  मुख्य कैंपस में हम बीए वालो के अलावा कोई और इस समस्या पर चिंता नहीं सकता है , बीकॉम और बीएससी वाले सिर्फ एक बिल्डिंग से दूसरे बिल्डिंग तक ही  आते जाते हैं और इन्हें कोई मतलब नहीं होता बचे-खुचे ऑनर्स वाले  उनकी तादाद ही कम है वह सिर्फ अपने विषय में परिपूर्ण होते रहते हैं इन्हें भी इस समस्या से कोई लेना देना नहीं पर हम बीए वालों हमारी संख्या भार...
चुनाव अपने अंतिम पड़ाव की तरफ है चार चरणों के मतदान के बाद भी कई सारे लोकहित मुद्दे गायब से हैं चुनाव आते हैं तो ये अपेक्षा रहती है कि लगभग सभी सामाजिक आर्थिक समस्याओं पर पुरजोर बहस होगी, समस्याओं से निपटने के लिए उस पर चर्चा होगी पर मौजूदा आम चुनाव में यह सब मुद्दे कहीं दूर नजर आते हैं मानो ऐसा लगता है जैसे कोई सामाजिक और आर्थिक समस्या रह ही नहीं गई है, चहे वह सत्ताधारी पार्टी हो या विपक्ष इन सब मुद्दों पर कभी बात ही नहीं करते लंबे चौड़े भाषणों में आम समस्याओं के मुद्दे कहीं विलुप्त नजर आते हैं, बढ़ती महंगाई, शिक्षा ,स्वास्थ्य ,रोजगार, कानून इन सब के अलावा आजकल एक सबसे महत्वपूर्ण समस्या है बढ़ते "प्रदूषण" और "जनसंख्या विस्फोट", जनसंख्या विस्फोट इसलिए क्योंकि यहां की जनसंख्या में वृद्धि नहीं बल्कि तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। यह समस्या सिर्फ भारत की ही नहीं बल्कि लगभग सारे देशों की है, विडंबना देखिए विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित शहरो में भारत के ही हैं टॉप 20 में से 13 शहर और तो और उस लिस्ट के पहले 7 शहर सिर्फ हमारे देश के ही हैं   यह समस्या सिर्फ वायु प्...