अनपढ़ है पर, मेरे चेहरे को खूब पढ़ती है,
वह मां ही है जो मेरे हर दुख में सिसकती है
मैं खाना खाया या नहीं
हमेशा पूछती है
चाहे उसके पास रहूं या
उससे कोसों दूर
पहले जब मैं छोटा था,
अपने सारे कामो को छोड़ कर मेरे लिए
सुबह जल्दी खाना पकाती थी
कहीं देर ना हो मेरे स्कूल जाने की।
अब भले ही बड़ा हो गया हूं
घर से कोसों दूर हो गया हूं
पर जब भी घर जाता हूं
माँ पहले मुझे खाना खिलाती है
फिर अपने खाती है
चाहे देर रात से कहीं से घूम कर आउँ या
देर दोपहर में।
भले ही अनपढ़ है पर मेरे चेहरे को पढ़ती है
वह मां ही है जो मेरे हर दुख में सिसकती है
मुकेश आनंद
12/04/2019
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