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"कोहबर की शर्त"

'कोहबर' विवाह के रस्म अदायगी में एक पड़ाव जहाँ शादी के पश्चात पहली बार वर वधु मिलते है साथ में जवार की लड़कियां और महिलायें रहती, पुरुष में वर और शाहबाले के अलावा और कोई नही होता है । हँसी ठिठोली और कई तरह के खेल खेलाये जाते है और जो जीतता है वह हारने वाले से कुछ न कुछ शर्त करता है ।
उपन्यास "कोहबर की शर्त" आंचलिक भाषा पर आधारित एक उपन्यास है जिसके मुख्य पात्र चंदन और गुंजा के प्रेम और बलिदान पर आधारित है।
कहानी इतनी संजीदगी से गढ़ी गई है कि आप की आखों को भी नम कर देती है, जैसे-जैसे आप उपन्यास को पढ़ते जाते है सामने वो छवि , आकृति बनती जाती है यह आकृति एक स्वप्न है।
विवाह की रात कोहबर के रस्म में चलने वाली नोक-झोंक जो कुछ इस तरह है....
"बहिरे हो क्या,पहुना?या अपनी बहन को याद आ रही है?"
"हम क्यो अपनी बहन को याद करे! हमारे तो कोई बहन भी नही है। हम तो दूसरे की बहन लेने आये है!" बारह साल का चंदन तपाक से जवाब देता है ।
कोहबर की वो नोक-झोंक दोनों को एक ऐसे रास्ते पर लाकर खड़ा कर देती है जो जाकर उस सागर में गिरता जिसे लोग प्रेम, मोहब्बत, इश्क और चाहत कहते हैं। रूपा जब पहली बार गर्भवती हुई तो गुंजा चौबेछपरा से बलिहार आई जहाँ गुंजा और चन्दन के बीच के प्रेम ने आग पकडनी शुरू कर दी।
किन जहाँ तक सुना गया है और सच भी है, सच्ची मोहब्बत को सबसे पहले नज़र लगती है। रूपा दुसरे बच्चे को जन्म देने से पहले ही चल बसी। वैद्द जी सलाह पर ओंकार ने गुंजा से विवाह कर लिया। इतना कुछ हो गया लेकिन चन्दन अपनी पसंद, अपने प्यार और अपनी मोहब्बत के बारे में ओंकार को नहीं बताया। क्यूंकि ओंकार ख़ुशी में ही उसने अपनी ख़ुशी को पाने की कोशिश की। क्यूंकि ओंकार उसका बड़ा भाई ही नहीं बल्कि माँ-बाप से भी बढ़कर था। गुंजा ने भी चन्दन के कुछ बोल न पाने के कारण अपनी चुप्पी साध ली और ओंकार के साथ सात फेरे लेकर बलिहार आ गयी। लेकिन इससे गुंजा के मन में चन्दन के लिए प्रेम कम न हुआ वहीँ चन्दन के मन में एक असुरक्षा की भावना भी आ गयी।
मुझे नहीं लगता की कोई भी इंसान इस प्रकार से जीवन को जी पायेगा जैसा चन्दन इस कहानी में जीता है। लेकिन सिर्फ चन्दन के ही जीवन को आप ऐसा नहीं कह सकते। गुंजा के जीवन को देखिये, जिस इंसान से उसने इतना प्रेम किया और जिसके साथ हमसफ़र बन कर जिन्दगी जीने की तमन्ना थी उसको उसने देवर के रूप में पाया। बहुत कठिन गुंजा के मनोस्थिति को समझना। जहाँ गुंजा विवाह के बाद ओंकार के साथ-साथ चन्दन का ख्याल रखना चाहती थी वहीँ चन्दन हमेशा उससे दुरी बनाकर रखना चाहता है। गुंजा चाहती है की चन्दन विवाह करके अपनी गृहस्थी बसा ले वही चन्दन अपने अकेलेपन को, अपनी मोहब्बत को, किसी भी जंजीर से बाँधने को तैयार नहीं है। मेरे हिसाब से प्रेम वह नहीं जिसे हम फिल्मों में देखते हैं, प्रेम वह है जिसे हम अपनी वास्तविक जीवन में जिते हैं।

Comments

  1. प्रेम कभी भुलाया नहीं जा सकता .. किउंकि जब आप प्रेम में होते तो आप प्रेम करते नहीं बल्कि प्रेममय हो जाते हैं... व्यक्ति चाहे जो करें किंतु अपने अतीत से कभी नहीं भाग सकता कभी इस क्षण को नही भुला सकता जिस वक्त में उसने प्रेम को जिया था... बेहद ही बेहतरीन समीक्षा आनंद 🌺

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