और सुबह नींद खुली घड़ी में आठ बजे रहे थे...
पहले मोबाइल की तरफ नजर गई तारीख आज 22 थी दिन रविवार और जनता कर्फ्यू का आह्वान ।
मोबाइल के नोटिफिकेशन चेक कर रहा था लगभग कईयों के मैसेज पढ़े थे कि आज घर में ही रहे घर से बाहर बिल्कुल ही ना निकले मैंने मोबाइल को दूर किया बिस्तर से उठकर बाहर बालकनी की तरफ निकल आया सामने गलियां एकदम सुनी थी बिल्कुल खामोश जो लखनऊ की गलियों की अदावत थी ही नहीं ...चिड़ियों की चहचहाने की आवाज कानों तक साफ़ आज पहुंच रही थी गाड़ियों की आवाजाही थम सी गई थी।
गली में किसी चीज का आना नहीं हुआ कोई भी व्यक्ति बाहर नहीं निकला। एक अकेली पत्ती गली के छोर पर खड़े अमरूद के वृक्ष से अलग हुई और उस खामोशी ठहराव में गिर गई । जैसे एक सांकेतिक गिरना था संकेत था वस्तुओं में निहित एक शक्ति का जिसे आपने अनदेखा कर दिया एक छोर से दूसरे छोर तक सिर्फ दिख रही थी तो सिर्फ खामोशी और सुनाई पड़ रही थी तो हवा की सरसराहट और चिड़ियों की चहचहाहट।
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पहले मोबाइल की तरफ नजर गई तारीख आज 22 थी दिन रविवार और जनता कर्फ्यू का आह्वान ।
मोबाइल के नोटिफिकेशन चेक कर रहा था लगभग कईयों के मैसेज पढ़े थे कि आज घर में ही रहे घर से बाहर बिल्कुल ही ना निकले मैंने मोबाइल को दूर किया बिस्तर से उठकर बाहर बालकनी की तरफ निकल आया सामने गलियां एकदम सुनी थी बिल्कुल खामोश जो लखनऊ की गलियों की अदावत थी ही नहीं ...चिड़ियों की चहचहाने की आवाज कानों तक साफ़ आज पहुंच रही थी गाड़ियों की आवाजाही थम सी गई थी।
गली में किसी चीज का आना नहीं हुआ कोई भी व्यक्ति बाहर नहीं निकला। एक अकेली पत्ती गली के छोर पर खड़े अमरूद के वृक्ष से अलग हुई और उस खामोशी ठहराव में गिर गई । जैसे एक सांकेतिक गिरना था संकेत था वस्तुओं में निहित एक शक्ति का जिसे आपने अनदेखा कर दिया एक छोर से दूसरे छोर तक सिर्फ दिख रही थी तो सिर्फ खामोशी और सुनाई पड़ रही थी तो हवा की सरसराहट और चिड़ियों की चहचहाहट।
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यक़ीन मानिए कभी कभी ऐसा कर्फ्यू भी जरूरी है .. आज शहर में रहते हुए पहली बार अनुभूति हुई कि शहर में भी लोग इस तरह रहते है ... जहाँ दिन भर आप खुद को घर के अंदर कैद करके पड़े है .. और शाम को आप घरों से बाहर निकल कर पूरा परिवार एक साथ छत पर एक दूसरे से खुशी बाँटते हुए... मानो जैसे कोई जंग जो कई सालों से लड़ी जा रही हो उसे जीत ली हो....
पिछले 4 सालो से मैं शहर में रहता हूं कभी आसमानों में पंछियो को इस तरह मंडराते नहीं देखा सच मानिए....
आज पता नही क्यो एकदम अलग सुख की अनुभूति हो रही है... सबके चेहरे से द्वेष गायब है अनुराग है.. मंदम-मंदम मुस्कान....
लखनऊ रहते 2 साल हो गए है यहाँ मैंने आसमानो में चिड़ियों से ज्यादा पतंगों को उड़ते देखा है ..पर पता है आज सिर्फ चिड़ियों को उड़ते देखा है !!
अगर आप एकांत में रहे या दिन भर एक चारदीवारी के भीतर खुद को समेट कर रखे हो.... और अचानक एक मीठी ध्वनि की तंरगे आपके कानों तक पहुँचता है तो रोम-रोम पुलकित हो उठता है यकीन ना हो तो कभी ध्यान लगा कर देख लीजियेगा... जब आप अपने मन को एकांत किये हो कुछ समय पश्चात आपके कानो में शंखनाद और घंटियों की आवाज़ पहुँचता है तो मन प्रफुल्लित हो उठता है..... .
5 बजने के पहले ही लोग अपने छतों पर पहुँच गए... सब के हाथ मे कुछ न कुछ था... जैसे ही ध्वनियों को प्रफ़ुट हुआ चिड़ियों का अचानक आसमान में मठलाना और तेज़ी से बढ़ गया जैसे आज लोग उन पंछियो को जगाये हो कि आओ निकल आओ हम सब अब बाहर आ गए है.!!!
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पर इन सब के परे कुछ पटाखें फोड़ने पर और जनसमूह में निकाल रहे थे मतलब हद होती है .... मूर्खता की ....
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आज भले ही हम ताली और थाली बजाए है,
साथ ही आज हमारे 17 जवान सुकमा में शहीद हो गए... सनद रहे उन तालियों और थालियों की गड़गड़ाहट में उन्हें भूल न जाएं ...
अश्रुपूर्ण श्रंद्धाजलि 💐
___मुकेश आनंद
👌❤
ReplyDeleteशुक्रिया अंशिका
DeleteVery nice
ReplyDeleteObservation skill gjb hai bhai.....bhaw purana shradhhanjali un jawano ko
ReplyDeleteShandar
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