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"त्यागपत्र" समीक्षा; - जैनेंद्र कुमार

पहली बार जैनेंद्र कुमार को पढ़ा... त्यागपत्र पढ़ते हुए.. मुझे निर्मला की त्रासदी याद आ गई .. जैसे जैसे मैं इस लघु उपन्यास को पढ़ रहा था... निर्मला की वो कथन याद आ गया कि .. दुःख में जलना तय है .. और दुःख ने निर्मला जैसे कइयो स्त्री को अपने आगोश में लीन कर लिया..। प्रेमचंद जी मे जिस तरह से स्त्री विमर्श की सशक्त गद्य गढ़ी है वह अद्भुत है .. और त्यागपत्र पढ़ते हुई मुझे लगा कि जैनेंद्र कुमार को स्त्री विमर्श पर प्रेमचंद के समकक्ष कहा जा सकता है अगर कोई बाध्यता न हो तो।
इन स्त्रियों ने कर्तव्य निर्वाह करते हुए जिस प्रकार नैतिकता, मर्यादा का विश्लेषण किया, जिस तरह सामाजिक संरचना में रचे बसे पाखंड को तार तार किया वह भविष्य की अधिकारसंपन्न स्त्री के लिए रास्ता बनाता है। जैनेंद्र की इन स्त्रियों ने कहीं स्वेच्छा से अपना जीवन नहीं चुना है। अक्सर यही हुआ कि उनके मन की जो बात थी, मन में ही उसका दम घुट गया। लेकिन परिस्थितियों का सामना करने में इनके वजूद की जद्दोजहद प्रकट होती है। नियति की शिकार होने के बाद भी इन स्त्रियों ने अपने लिए रास्ते जरूर बनाए या कम से कम रूढ़ रास्तों से ऐतराज दिखाया।
...
नियति का लेख बँधा है, एक भी अक्षर उसका यहाँ से वहाँ न हो सकेगा,वह बदलता नहीं, बदलेगा नहीं। पर विधि का  वह अतर्क्य तर्क किस विधाता ने बनाया है , उसका इसमे क्या प्रयोजन है?
लीला उसकी है जीते मरते हम है क्यो जीते है क्यो मरते है ?? पता नहीं.. पर कभी कभी कई बार जीना मरना होता है ... जिंदगी है , चलती जाती है ,कौन किसके लिए थमता है , यह तो चक्कर है ।
इसी चक्कर के भवँर चक्कर मे फसती है त्यागपत्र की नायिका मृणाल..मृणाल एक अद्भुत व्यक्तित्व वाली स्त्री है। मृणाल अपने आरंभिक जीवन से मरणोपरांत तक अनेक समस्याओं का सामना करती रही। वह कभी भी अपनी समस्याओं के लिए दूसरों को जिम्मेदार नहीं समझती है। मृणाल के चरित्र में निम्न गुण विद्यमान हैं _
सहनशीलता, आत्मसंघर्ष, रूढ़ीविरोधी आदि।
जिस तरह वह लड़ती है अपने आत्मसम्मान के लिए, अपने स्वाभिमान के लिए.. वह उसके चरित्र को अद्भुत ऊँचाई प्रदान करता है ..। कहती है "जिसको तन दिया, उससे पैसा कैसे लिया जा सकता है , यह मेरी समझ मे नही आता , तन देने की जरूरत मैं समझ सकती हूँ। तन दे सकूँगी , शायद वह अनिवार्य हो। पर लेना कैसे? दान स्त्री का धर्म है। नही तो उसका ओर क्या धर्म है? मन मांगा जाएगा, तन भी मांगा जाएगा। सती का आदर्श और क्या है ? पर उसकी बिक्री -- न , न यहाँ होगा।"
इस व्यक्तव्य से मृणाल के चरित्र को समझ सकते है।
मृणाल हिंदी साहित्य की शायद पहली आधुनिक स्त्री है जो नैतिकता की परंपरागत मान्यता को सिरे से खारिज करती है। वह न सिर्फ अपने स्त्रीत्व व अस्मिता के प्रति सजग है बल्कि खुद को तिल-तिल जला कर भी वह नया रास्ता अख्तियार करती है। सच है कि जलना उसके जैसी स्त्रियों के नसीब में होता है, पर वह घर में इज्जत बचाते दम नहीं तोड़ती। मृणाल ने घर छोड़ा, बाहर निकली और हाशिए के लोगों के बीच पहुँच गई। यहीं उसका व्यक्तित्व नए आयाम पाता है। उसके पास समाज व लोगों को समझने के लिए तार्किक बुद्धि है जो कथित सभ्य समाज के ढोंगों का पर्दाफाश करती है। जिंदगी के आखिरी मुकाम पर वह शराबी, जुआरी, भिखारियों, वेश्याओं जैसे कथित दुर्जनों के बीच है। मृणाल इनके बीच भी इनकी ऊपरी परत खरोंच कर इनसानियत पा जाती है।
 इस उपन्यास के अंत में हम सोचने पर मजबुर हो जाते हैं क्या समाज ने मृणाल के साथ सही किया?
क्या प्रमोद द्वारा दिया जाने वाला त्यागपत्र ही मृणाल  के लिए न्याय था?
यह उपन्यास पाठक पर अनेक सवालिया निशान लगाता है..इस उपन्यास को जितनी बार पढ़ा जाए उतनी बार एक नया सवाल हमें को सोचने के लिए मजबुर करता है इस उपन्यास की यही सबसे बड़ी मनोवैज्ञानिक तथ्य है।

Comments

  1. जैनेंद्र की मृणाल उन सभी समाज के दायरों के तिलस्म को तोड़ने और स्त्रियों का आंतरिक द्वंद है कि आखिर यह अशक्तता , असमर्थता मनुष्य के अपमान के साक्षी ये दुर्गुण आखिर कब तक उनकी विशेषता बनें रहेंगे .... ये आधुनिक नारी सदी का आगाज है कि अगर स्त्रियां साज सज्जा और अन्य चीजों पर जान देती हैं तो सर्द गर्द धूल में खुद को तपाने की भी शक्ति रखती हैं ..... एक अच्छी समीक्षा जो लेखक के भाव और मूल तत्वों को पाठक से जोड़ती है...✍️👌

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