गांव में दो महीने ऐसे होते है जब प्रकृति अपने सुंदरता के पराकाष्ठा पर होती है.. चारो तरफ मनमोहन दृश्य जिनमे गजब की आकर्षक शक्ति होती है इसी दरमियान मनुष्य प्रेम का सृजन भी खूब करता है। शहर में प्रेम के लिए वेलेंटाइन मात्र हफ़्ता जैसा ही बस होता और गांव में यहां तो फ़ाल्गुन और सावन जैसे दो-दो महीने होते हैं, और इन महीनों में लोकगीतों का बड़ा महत्व होता है । भारतीय लोक परम्परा की ये बड़ी खूबी है कि यहाँ हर मौसम , हर कार्य के लिए अलग-अलग कई पारम्परिक गीत है ।
ख़ैर अभी सावन चल रहा है सावन के मौसम में कजरी गीतों का महत्व है कजरी गीतों में वर्षा ऋतु का वर्णन विरह-वर्णन तथा राधा-कृष्ण की लीलाओं का वर्णन अधिकतर मिलता है। कजरी की प्रकृति क्षुद्र है । इसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है। वक्त के साथ सब बदल गया है अब न कजरी सुनने वाले लोग है और न ही सुनाने वाले लोग ।
और एक वक्त था जब बरही के लिए जद्दोजहद करके... एक दो जुन का खाना भौ उठा के नाक सिकोड़ कर कई बार विनती निहोरा करके मंगा लेते थे बार बार मान मनुव्वल करने के बाद बरही (रस्सी) आ जाती थी । फिर क्या न खाने की फ़िक्र न नहाने की पूरा दिन थैली में खटाई भर के झूलते वक़्त उसे खाने में ही बीत जाता था।
समयके साथ - साथ हम कितना आगे बढ़ गए है खुद को इतना व्यस्त कर लिए है कि अब झूले सिर्फ पंचमी के दिन ही एक्का-दुक्का दिखाई पड़ते है,पेड़ की डालियां सुनि है और झूला अब तो महज खानापूर्ति का ही रह गया है ।
वक़्त ने ऐसी करवट फेरी है कि अब सब कुछ वर्चुअल में हो रहा है ...।
बस अब कोई ऐसा एप् बन जाए जो हमे उस झूले का भी अनुभूति करा दे...।
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