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गाँव


" अक्सर गांव पर वही लोग लिखते रहते है, कि गाँव बदल गया है
जो पूर्णतः छोड़ चुके होते
जिनके लिए गांव सिर्फ
छुट्टी काटने और मौज करने के लिए ही सीमित रह गया
और कहते है कि गांव अब बदल गया है "
एक गांव में दो दोस्त थे, नाम था चेतन और आनंद, हर शाम उनकी मस्ती भरी रहती थी ठंडी गर्मी जाड़े की ज़रा भी उनको फिक्र नही होती थी,,,गर्मी के दुपहरी में कभी इस आम के पेड़ पर कभी उस आम के पेड़ पर चढ़कर उसपर लगे टिकोरे को झाड़ देते थे , आम के साथ साथ गालियां भी उन्हें नमक स्वरूप खानी पड़ती थी, सिर्फ गालियां ही सीमित नही थी बाकायदा चप्पल और डंडे की भी जबरदस्त मार पड़ती थी,,,, उन दोनों का बचपन बड़े मस्ती और शरारत के साथ बीता,,, पढ़ाई भी साथ में करते रहे उन मस्ती भरी जिंदगी के बीच कब उन दोनों ने इंटर पूरा कर लिया उन्हें पता भी न चला ,,, अब बारी थी शहर में जाकर पढ़ने की सो दोनों शहर की ओर कूच कर लिए, एक जज्बा था कुछ कर गुजरने का उन दोनों के अंदर, चूंकि होता क्या है कि आदमी दो ही तरह से अपने आप को स्थापित कर पाता है एक होता है क़िस्मत, पर उन दोनों के पास वो था नही अगर होता तो गरीब के यहाँ क्यो पैदा होते। दूसरा होता है मेहनत उसके अलावा व्यक्ति के पास कोई चारा नही बचता है ,,
उन दोनों ने जम कर मेहनत की उच्च शिक्षा में अच्छे नंबरों से पास हो गए,, दोनों ने साथ मिलकर सरकारी नौकरी की तैयारी भी की और जल्द ही उन दोनों ने सफलता भी अर्जित कर ली...
अब यहाँ से दोनों के रास्ते अलग हो गए गांव छूट गया अब शहर के बाशिंदे हो गये दोनों में कभी अब फुर्सत के साथ मुलाकात नही पाती थी,, हालांकि संचार के माध्यम से दोनों एक दूसरे से संपर्क बनाए रखा...
कभी कभी गांव आते दो चार दिन रहते और फिर चले जाते, पर कभी ऐसा नही हुआ कि दोनों एक ही साथ गांव आये और मिले... कालचक्र चलता रहा एक बार दोनों को अपने काम के सिलसिले में शिमला जाना हुआ, दोनों वहाँ मिले कुछ वक्त साथ गुजारे, फिर बतकही शुरू हुईं.....
चेतन ने कहा "जानत हव आनंद अब गांव एकदम ही बदल गइल हव, पहिले जब केहू शहर से गांव आवत रहल त ओहके पानी पिए ला भेली , गुड़ देवल जात रहलऽ, गुड़े कऽ शरबत बनाऽ के देतऽ रहलऽ सब बाकि अब......"
तभी आनंद बीच मे टोकता है,"तब का??"
"अब सब सर..र देनी जाला फट से ठंडा ला देला"
"अच्छा त तोहके दिक्कत यहवा बा, तु शहर में रहब पिज्जा बर्गर खइबऽ, कोल्डड्रींक पियब, उह गाँव गइला पे सब दे दिहल तऽ कहत हव गाँव ही बदल गइलऽ बा, तु अपने आप के बदल लेबऽ का गाँव न बदली, वाह चेतन वाहऽ"
"तू हमरा बात के नइखऽ समझत आनंद! गाँव में पहिले गइले पर सब केहू पूछत रहे बाकि अब तऽ जल्दी केहूँ बोलेला भी ना जवन दुआर पर बइठका होत रहलऽ अब उहो कहीं ना होत बा"
"हम सब तोहार बात के समझत हईं, तु गाँव जइबऽ विकेंड मनावे.. दु दिन करतीं और तू चाहत हव की सब केहू तोहरे साथ रहे, ई कइसे हो सकत हऽ, वीकेंड मनावे लऽ तूहूँ एगो झोपड़ी बना लऽ बढ़िया से खाठ-वाठ धई ल अउर खूब मौज करऽ अब त शहर में कई जगह अइसन बन गइलऽ बा जहाँ लोग जालन कुछ देर खातिर गाँव वाला फीलींग लेके आवेलऽ तूहूँ उह करऽ।"
"जवन ख़ुशी गाँव में बा उ इ शहर के बनावटी गाँव में कहाँ मिली भाई, कहाँ उ ताजगी से भरल हवा मिली, कहाँ उऽ पोखरा ताल मिलीं जेकरी किनारे बइठऽ के अपने आप से बात कइलऽ जा सकत बा, शहर में सब कुछ बना लिहऽ लोग पर उ गाँव वाला सुकुन ना दे सकत हव आनंद।"
"जानत हव चेतन, गाँव आज भी वइसही ब़ा, आपन ब़ाह फइला के हमनी के वोइसही इन्तजार करत हऽ जइसे पहिले करत रहलऽ, इ बताव कवन माई अपना बेटा के अपने से अलग कइल चाहे ली, सब माई लोग इह चाहेला की उनकर बेटा उनके पास ही रहऽ वइसहीं गांव भी चाहेला की तू ओकरे पास ही रह ।"
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गाँव बदला नही बदल हम औऱ आप गये, गांव आज भी  माँ की तरह आँचल फैला कर इन्तज़ार करती है कि कब मेरा बेटा आएगा, जिसे अपने इस आँचल के छाव में दुबका लेंगे... आज भी वो पोखरे, वो ताल, आम के बग़ीचे आप का इंतजार कर रहे है, कोई आये उनसे बात करें अपना दुख दर्द बाटे, वो आम के बगीचे भी इसी आस में बैठे है कि कोई आये मेरी टहनियों पर वैसे ही उधम मचाये, उछले- कूदे...
शहर हमे सब कुछ दे सकता है पर वो गाँव वाली ख़ुशी कभी नही दे सकता, जहाँ मन हमेशा चंचलता से भावविभोर रहता है ।
गांव जाइये तो कभी वीकेंड मनाने की तरह मत जाइए,, उस गांव को अपने जेहन में रखकर जीने की कोशिश कीजिये.. जो आपको आत्मसंतुष्टि मिलेगी उसको मैं यहाँ शब्दो मे नही लिख सकता, क्योकि आत्मसंतुष्टि का कोई पैमाना नही होता।

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