चुनाव अपने अंतिम पड़ाव की तरफ है चार चरणों के मतदान के बाद भी कई सारे लोकहित मुद्दे गायब से हैं
चुनाव आते हैं तो ये अपेक्षा रहती है कि लगभग सभी सामाजिक आर्थिक समस्याओं पर पुरजोर बहस होगी, समस्याओं से निपटने के लिए उस पर चर्चा होगी पर मौजूदा आम चुनाव में यह सब मुद्दे कहीं दूर नजर आते हैं मानो ऐसा लगता है जैसे कोई सामाजिक और आर्थिक समस्या रह ही नहीं गई है,
चहे वह सत्ताधारी पार्टी हो या विपक्ष इन सब मुद्दों पर कभी बात ही नहीं करते लंबे चौड़े भाषणों में आम समस्याओं के मुद्दे कहीं विलुप्त नजर आते हैं,
बढ़ती महंगाई, शिक्षा ,स्वास्थ्य ,रोजगार, कानून इन सब के अलावा आजकल एक सबसे महत्वपूर्ण समस्या है बढ़ते "प्रदूषण" और "जनसंख्या विस्फोट", जनसंख्या विस्फोट इसलिए क्योंकि यहां की जनसंख्या में वृद्धि नहीं बल्कि तीव्र गति से वृद्धि हो रही है।
यह समस्या सिर्फ भारत की ही नहीं बल्कि लगभग सारे देशों की है, विडंबना देखिए विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित शहरो में भारत के ही हैं टॉप 20 में से 13 शहर और तो और उस लिस्ट के पहले 7 शहर सिर्फ हमारे देश के ही हैं
यह समस्या सिर्फ वायु प्रदूषण की ही नहीं है बल्कि जल, मृदा,ध्वनि सभी जैसी सभी प्रदूषण की समस्याओं से है जिससे भारत गंभीर रूप से झेल रहा है पर इस समस्या पर कोई भी राजनेता बात नहीं करते क्योंकि यहां के लोगों उसके जिंदगी से कहीं ज्यादा जरूरी है #जातिगत_विकास #सांप्रदायिक , आखिर वोट जो उसी आधार पर मिलना है।
नार्वे देश है जहां पिछले दशकों से प्रदूषण की सबसे बड़ी समस्या से ग्रसित देश था यहां के लोगों ने एक जन आंदोलन किया सरकार के खिलाफ और सरकार को विवश होकर नए कानून बनाने पड़े।
पर क्या यह हमारे यहां संभव नहीं है??
कि हम अपने हुक्मरानों को इसके लिए बाध्य करें कि वह नए कानून नए प्रावधान प्रदूषण की समस्या को निजात दिलाने के लिए बनाएं क्या हमारे जीवन का कोई मूल्य नहीं है क्या उसी गंदे हवाओं से ग्रसित होकर हम जीने को मजबूर हैं क्या यही भारत क्या यही भारत का भविष्य है ।
अब दूसरे मुद्दे पाते हैं जो जनसंख्या विस्फोट के, जनसंख्या विस्फोट अपने देश में अनेक समस्याओं प्रति तथा विकसित करते हैं तथा विकास मान देशों के लिए तो यह एक तरीके का अभिशाप है ऐसे देश को आर्थिक कार्यक्रम तथा सामाजिक शैक्षणिक एवं स्वास्थ्य संबंधित अनेक सुविधाओं का आवश्यक गति से विकास नहीं हो पाता परिवारों की सदस्यों की संख्या बढ़ने से ग्रामीण तथा नगरीय दोनों ही समाजों में परिवारिक जीवन में स्वास्थ्य शिक्षा तथा व्यवहार आदि से संबंधित कठिनाइयों बढ़ती है ऐसी दशा में मकानों की संख्या बेतहाशा बढ़ती जाती हैं और अर्थाभाव की स्थिति वाले परिवार जो कि पहले निम्न स्तर पर जीवन यापन करते हैं वह नीचे स्तर पर जीवन बिताने को मजबूर हो जाते हैं, और इन्हीं कारणों से अपराध और असामाजिक कृतियों में भी वृद्धि होने लगती है ।
परंतु लोगों को इन सब मुद्दों से क्या लेना देना लोग तो यहां हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद ,भक्त -चमचा ,जातिवाद धर्म और सांप्रदाय क्यों ऐसे मुद्दों पर कोई बात करेगा क्योंकि जिंदा रहना नहीं जरूरी है जरूरी है कि हमारी जातिगत विकास सांप्रदायिक विकास कैसे हम वह हाई लेवल की पोल्यूटेड हवा लेने के लिए तैयार हैं उससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता, चाहे हम हजारों बीमारी से जूझे, हो जाए चाहे फेफड़े खराब उससे कोई मतलब नहीं है मतलब है तो सिर्फ और सिर्फ मंदिर वर्सेस मस्जिद, हिंदू वर्सेस मुस्लिम,
भक्त vs चमचा,
चुनाव आते हैं तो ये अपेक्षा रहती है कि लगभग सभी सामाजिक आर्थिक समस्याओं पर पुरजोर बहस होगी, समस्याओं से निपटने के लिए उस पर चर्चा होगी पर मौजूदा आम चुनाव में यह सब मुद्दे कहीं दूर नजर आते हैं मानो ऐसा लगता है जैसे कोई सामाजिक और आर्थिक समस्या रह ही नहीं गई है,
चहे वह सत्ताधारी पार्टी हो या विपक्ष इन सब मुद्दों पर कभी बात ही नहीं करते लंबे चौड़े भाषणों में आम समस्याओं के मुद्दे कहीं विलुप्त नजर आते हैं,
बढ़ती महंगाई, शिक्षा ,स्वास्थ्य ,रोजगार, कानून इन सब के अलावा आजकल एक सबसे महत्वपूर्ण समस्या है बढ़ते "प्रदूषण" और "जनसंख्या विस्फोट", जनसंख्या विस्फोट इसलिए क्योंकि यहां की जनसंख्या में वृद्धि नहीं बल्कि तीव्र गति से वृद्धि हो रही है।
यह समस्या सिर्फ भारत की ही नहीं बल्कि लगभग सारे देशों की है, विडंबना देखिए विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित शहरो में भारत के ही हैं टॉप 20 में से 13 शहर और तो और उस लिस्ट के पहले 7 शहर सिर्फ हमारे देश के ही हैं
यह समस्या सिर्फ वायु प्रदूषण की ही नहीं है बल्कि जल, मृदा,ध्वनि सभी जैसी सभी प्रदूषण की समस्याओं से है जिससे भारत गंभीर रूप से झेल रहा है पर इस समस्या पर कोई भी राजनेता बात नहीं करते क्योंकि यहां के लोगों उसके जिंदगी से कहीं ज्यादा जरूरी है #जातिगत_विकास #सांप्रदायिक , आखिर वोट जो उसी आधार पर मिलना है।
नार्वे देश है जहां पिछले दशकों से प्रदूषण की सबसे बड़ी समस्या से ग्रसित देश था यहां के लोगों ने एक जन आंदोलन किया सरकार के खिलाफ और सरकार को विवश होकर नए कानून बनाने पड़े।
पर क्या यह हमारे यहां संभव नहीं है??
कि हम अपने हुक्मरानों को इसके लिए बाध्य करें कि वह नए कानून नए प्रावधान प्रदूषण की समस्या को निजात दिलाने के लिए बनाएं क्या हमारे जीवन का कोई मूल्य नहीं है क्या उसी गंदे हवाओं से ग्रसित होकर हम जीने को मजबूर हैं क्या यही भारत क्या यही भारत का भविष्य है ।
अब दूसरे मुद्दे पाते हैं जो जनसंख्या विस्फोट के, जनसंख्या विस्फोट अपने देश में अनेक समस्याओं प्रति तथा विकसित करते हैं तथा विकास मान देशों के लिए तो यह एक तरीके का अभिशाप है ऐसे देश को आर्थिक कार्यक्रम तथा सामाजिक शैक्षणिक एवं स्वास्थ्य संबंधित अनेक सुविधाओं का आवश्यक गति से विकास नहीं हो पाता परिवारों की सदस्यों की संख्या बढ़ने से ग्रामीण तथा नगरीय दोनों ही समाजों में परिवारिक जीवन में स्वास्थ्य शिक्षा तथा व्यवहार आदि से संबंधित कठिनाइयों बढ़ती है ऐसी दशा में मकानों की संख्या बेतहाशा बढ़ती जाती हैं और अर्थाभाव की स्थिति वाले परिवार जो कि पहले निम्न स्तर पर जीवन यापन करते हैं वह नीचे स्तर पर जीवन बिताने को मजबूर हो जाते हैं, और इन्हीं कारणों से अपराध और असामाजिक कृतियों में भी वृद्धि होने लगती है ।
परंतु लोगों को इन सब मुद्दों से क्या लेना देना लोग तो यहां हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद ,भक्त -चमचा ,जातिवाद धर्म और सांप्रदाय क्यों ऐसे मुद्दों पर कोई बात करेगा क्योंकि जिंदा रहना नहीं जरूरी है जरूरी है कि हमारी जातिगत विकास सांप्रदायिक विकास कैसे हम वह हाई लेवल की पोल्यूटेड हवा लेने के लिए तैयार हैं उससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता, चाहे हम हजारों बीमारी से जूझे, हो जाए चाहे फेफड़े खराब उससे कोई मतलब नहीं है मतलब है तो सिर्फ और सिर्फ मंदिर वर्सेस मस्जिद, हिंदू वर्सेस मुस्लिम,
भक्त vs चमचा,
Relatable conditions in West Bengal
ReplyDelete